Menu

Showing posts with label Poetry. Show all posts
Showing posts with label Poetry. Show all posts

La Ilaha Illallah

Khudi ka sirr-e-nihan la-ilaha-illallah 
Khudi hai tegh fasan la-ilaha-illallah 

ye daur apne barahim ki talash mein hai 
sanam-kada hai jahan la-ilaha-illallah 

kiya hai tu ne mata-e-ghurur ka sauda 
fareb-e-sud-o-ziyan la-ilaha-illallah 

ye mal-o-daulat-e-duniya ye rishta o paiwand 
butan-e-wahm-o-guman la-ilaha-illallah 

Khirad hui hai zaman o makan ki zunnari 
na hai zaman na makan la-ilaha-illallah 

ye naghma fasl-e-gul-o-lala ka nahin paband 
bahaar ho ki Khizan la-ilaha-illallah 

agarche but hain jamaat ki aastinon mein 
mujhe hai hukm-e-azan la-ilaha-illallah 

-----------------------------------------------

ख़ुदी का सिर्र-ए-निहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 
ख़ुदी है तेग़ फ़साँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 

ये दौर अपने बराहीम की तलाश में है 
सनम-कदा है जहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 

किया है तू ने मता-ए-ग़ुरूर का सौदा 
फ़रेब-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 

ये माल-ओ-दौलत-ए-दुनिया ये रिश्ता ओ पैवंद 
बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 

ख़िरद हुई है ज़मान ओ मकाँ की ज़ुन्नारी 
न है ज़माँ न मकाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 

ये नग़्मा फ़स्ल-ए-गुल-ओ-लाला का नहीं पाबंद 
बहार हो कि ख़िज़ाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 

अगरचे बुत हैं जमाअत की आस्तीनों में 
मुझे है हुक्म-ए-अज़ाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह 

----------------------------------------------------------

خودی کا سر نہاں لا الہ الا اللہ 
خودی ہے تیغ فساں لا الہ الا اللہ 


یہ دور اپنے براہیم کی تلاش میں ہے 

صنم کدہ ہے جہاں لا الہ الا اللہ 


کیا ہے تو نے متاع غرور کا سودا 

فریب سود و زیاں لا الہ الا اللہ 


یہ مال و دولت دنیا یہ رشتہ و پیوند 

بتان وھم و گماں لا الہ الا اللہ 


خرد ہوئی ہے زمان و مکاں کی زناری 

نہ ہے زماں نہ مکاں لا الہ الا اللہ 


یہ نغمہ فصل گل و لالہ کا نہیں پابند 

بہار ہو کہ خزاں لا الہ الا اللہ 


اگرچہ بت ہیں جماعت کی آستینوں میں 

مجھے ہے حکم اذاں لا الہ الا اللہ 

मुसलमान | देवी प्रसाद मिश्र

कहते हैं वे विपत्ति की तरह आए
कहते हैं वे प्रदूषण की तरह फैले
वे व्याधि थे

ब्राह्मण कहते थे वे मलेच्छ थे

वे मुसलमान थे

उन्होंने अपने घोड़े सिन्धु में उतारे
और पुकारते रहे हिन्दू! हिन्दू!! हिन्दू!!!

बड़ी जाति को उन्होंने बड़ा नाम दिया
नदी का नाम दिया

वे हर गहरी और अविरल नदी को
पार करना चाहते थे

वे मुसलमान थे लेकिन वे भी
यदि कबीर की समझदारी का सहारा लिया जाए तो
हिन्दुओं की तरह पैदा होते थे

उनके पास बड़ी-बड़ी कहानियाँ थीं
चलने की
ठहरने की
पिटने की
और मृत्यु की

प्रतिपक्षी के ख़ून में घुटनों तक
और अपने ख़ून में कन्धों तक
वे डूबे होते थे
उनकी मुट्ठियों में घोड़ों की लगामें
और म्यानों में सभ्यता के
नक्शे होते थे

न! मृत्यु के लिए नहीं
वे मृत्यु के लिए युद्ध नहीं लड़ते थे

वे मुसलमान थे

वे फ़ारस से आए
तूरान से आए
समरकन्द, फ़रग़ना, सीस्तान से आए
तुर्किस्तान से आए

वे बहुत दूर से आए
फिर भी वे पृथ्वी के ही कुछ हिस्सों से आए
वे आए क्योंकि वे आ सकते थे

वे मुसलमान थे

वे मुसलमान थे कि या ख़ुदा उनकी शक्लें
आदमियों से मिलती थीं हूबहू
हूबहू

वे महत्त्वपूर्ण अप्रवासी थे
क्योंकि उनके पास दुख की स्मृतियाँ थीं

वे घोड़ों के साथ सोते थे
और चट्टानों पर वीर्य बिख़ेर देते थे
निर्माण के लिए वे बेचैन थे

वे मुसलमान थे

यदि सच को सच की तरह कहा जा सकता है
तो सच को सच की तरह सुना जाना चाहिए

कि वे प्रायः इस तरह होते थे
कि प्रायः पता ही नहीं लगता था
कि वे मुसलमान थे या नहीं थे

वे मुसलमान थे

वे न होते तो लखनऊ न होता
आधा इलाहाबाद न होता
मेहराबें न होतीं, गुम्बद न होता
आदाब न होता

मीर मक़दूम मोमिन न होते
शबाना न होती

वे न होते तो उपमहाद्वीप के संगीत को सुननेवाला ख़ुसरो न होता
वे न होते तो पूरे देश के गुस्से से बेचैन होनेवाला कबीर न होता
वे न होते तो भारतीय उपमहाद्वीप के दुख को कहनेवाला ग़ालिब न होता

मुसलमान न होते तो अट्ठारह सौ सत्तावन न होता

वे थे तो चचा हसन थे
वे थे तो पतंगों से रंगीन होते आसमान थे
वे मुसलमान थे

वे मुसलमान थे और हिन्दुस्तान में थे
और उनके रिश्तेदार पाकिस्तान में थे

वे सोचते थे कि काश वे एक बार पाकिस्तान जा सकते
वे सोचते थे और सोचकर डरते थे

इमरान ख़ान को देखकर वे ख़ुश होते थे
वे ख़ुश होते थे और ख़ुश होकर डरते थे

वे जितना पी०ए०सी० के सिपाही से डरते थे
उतना ही राम से
वे मुरादाबाद से डरते थे
वे मेरठ से डरते थे
वे भागलपुर से डरते थे
वे अकड़ते थे लेकिन डरते थे

वे पवित्र रंगों से डरते थे
वे अपने मुसलमान होने से डरते थे

वे फ़िलीस्तीनी नहीं थे लेकिन अपने घर को लेकर घर में
देश को लेकर देश में
ख़ुद को लेकर आश्वस्त नहीं थे

वे उखड़ा-उखड़ा राग-द्वेष थे
वे मुसलमान थे

वे कपड़े बुनते थे
वे कपड़े सिलते थे
वे ताले बनाते थे
वे बक्से बनाते थे
उनके श्रम की आवाज़ें
पूरे शहर में गूँजती रहती थीं

वे शहर के बाहर रहते थे

वे मुसलमान थे लेकिन दमिश्क उनका शहर नहीं था
वे मुसलमान थे अरब का पैट्रोल उनका नहीं था
वे दज़ला का नहीं यमुना का पानी पीते थे

वे मुसलमान थे

वे मुसलमान थे इसलिए बचके निकलते थे
वे मुसलमान थे इसलिए कुछ कहते थे तो हिचकते थे
देश के ज़्यादातर अख़बार यह कहते थे
कि मुसलमान के कारण ही कर्फ़्यू लगते हैं
कर्फ़्यू लगते थे और एक के बाद दूसरे हादसे की
ख़बरें आती थीं

उनकी औरतें
बिना दहाड़ मारे पछाड़ें खाती थीं
बच्चे दीवारों से चिपके रहते थे
वे मुसलमान थे

वे मुसलमान थे इसलिए
जंग लगे तालों की तरह वे खुलते नहीं थे

वे अगर पाँच बार नमाज़ पढ़ते थे
तो उससे कई गुना ज़्यादा बार
सिर पटकते थे
वे मुसलमान थे

वे पूछना चाहते थे कि इस लालकिले का हम क्या करें
वे पूछना चाहते थे कि इस हुमायूं के मक़बरे का हम क्या करें
हम क्या करें इस मस्जिद का जिसका नाम
कुव्वत-उल-इस्लाम है
इस्लाम की ताक़त है

अदरक की तरह वे बहुत कड़वे थे
वे मुसलमान थे

वे सोचते थे कि कहीं और चले जाएँ
लेकिन नहीं जा सकते थे
वे सोचते थे यहीं रह जाएँ
तो नहीं रह सकते थे
वे आधा जिबह बकरे की तरह तकलीफ़ के झटके महसूस करते थे

वे मुसलमान थे इसलिए
तूफ़ान में फँसे जहाज़ के मुसाफ़िरों की तरह
एक दूसरे को भींचे रहते थे

कुछ लोगों ने यह बहस चलाई थी कि
उन्हें फेंका जाए तो
किस समुद्र में फेंका जाए
बहस यह थी
कि उन्हें धकेला जाए
तो किस पहाड़ से धकेला जाए

वे मुसलमान थे लेकिन वे चींटियाँ नहीं थे
वे मुसलमान थे वे चूजे नहीं थे

सावधान!
सिन्धु के दक्षिण में
सैंकड़ों सालों की नागरिकता के बाद
मिट्टी के ढेले नहीं थे वे

वे चट्टान और ऊन की तरह सच थे
वे सिन्धु और हिन्दुकुश की तरह सच थे
सच को जिस तरह भी समझा जा सकता हो
उस तरह वे सच थे
वे सभ्यता का अनिवार्य नियम थे
वे मुसलमान थे अफ़वाह नहीं थे

वे मुसलमान थे
वे मुसलमान थे
वे मुसलमान थे

-- देवी प्रसाद मिश्र

Koi toh hai jo nizam-e-hasti chala raha hai

Koi toh hai, Koi toh hai jo nizam-e-hasti chala raha hai, 
Wahi khuda hai, wahi khuda hai


Dikhayi bhi na de jo nazar bhi, woh aa raha hai

Wahi khuda hai, wahi khuda hai


Nazar bhi rakhe sma'atein bhi,

Woh jan leta hain neeyatein bhi,
Jo khana-e-la Shaoor mein, 
Jagmagaa raha hai,
Wahi khuda hai, wohi khuda hai


Talash usko na kar buton mein, 

Woh hai badalti ruton mein


Jo din ko raat aur raat ko din banaa raha hai

Wahi khuda hai, wahi khuda hai


Koi hai toh hai jo nizame hasti chala raha hai

Wahi khuda hai, wohi khuda hai


Dikhayi bhi na de jo nazar bhi, woh aa raha hai

Wahi khuda hai, wahi khuda hai


Kisi ko tajo wakar bakshe,

Kisi ko zillat ke khar bakhshe,


Woh sab ke haathon pe,

Mohar-e-Qudrat laga raha hai
Wahi khuda hai, wohi khuda hai


Koi toh hai jo nizam-e - hasti chalaa raha hai

Khuda hai


Yeh chand taare hain noor usi ka

Hai har jagah pe zahoor usi ka
Yeh phool kaliyan 
Yeh sabze patte sajaa raha hai
Wahi khuda hai, wahi khuda hai


Koi toh hai jo nizam-e-hasti chala raha hai

Wahi khuda hai, wohi khuda hai


Koi toh hai jo nizame hasti chala raha hai



Kyun mangta hai tu is jahan se?

Tujhe milega khuda ke ghar se


Nabi sadqe jo apne haathon loota raha hai

Wahi khuda hai, wohi khuda hai


Dikhayi bhi na de jo nazar bhi woh aa raha hai

Wahi khuda hai


Koi toh hai jo nizame hasti chalaa raha hai 

Wahi khuda hai, Wohi khuda hai


Allahhumma salli ala muhammadin, 

Wa ala aalihi wa sahbihi wa sallim


Allahhumma salli ala muhammadin, 

Wa ala aalihi wa sahbihi wa sallim


Written by - Muzafar Warsi


-------------------------------------------------------
کوئی تو ہے جو نظام ہستی چلا رہا ہے، وہی خدا ہے
دکھائی بھی جو نہ دے نظر بھی جو آ رہا ہے، وہی خدا ہے 


تلاش اس کو نہ بتوں مے وہ ہے بدلتی ہوئی رتوں میں 
جو دن کو رات اور رات کو دن بنا رہا ہے، وہی خدا ہے


نظر بھی رکھے سماعتیں بھی وہ جان بھی لیتا ہے نیتیں بھی 
جو خانہ لاشعور میں جگمگا رہا ہے، وہی خدا ہے 


کسی کو تاج وقار بخشے کسی کو ذلّت کے غار بخشے
جو سب کے ماتھوں پہ مہر قدرت لگا رہا ہے، وہی خدا ہے 


سفید اس کا سیاہ اس کا نفس نفس ہے گواہ اس کا 
جو شعلہ جان جلا رہا ہے بجھا رہا ہے، وہی خدا ہے 


کوئی تو ہے جو نظام ہستی چلا رہا ہے، وہی خدا ہے 

- مظفر وارثی -
------------------------------------------------------
कोई तो है जो निज़ाम हस्ती चला रहा है वही खुदा है 
दिखाई भी जो न दे नज़र भी जो आ रहा है वही खुदा है 

तलाश उसको न कर बुतों रूतों वो है बदलती हुवे रूतों में 
जो दिन को रात और रात को दिन बना रहा है वही खुदा है 

नज़र भी रखे समाअतें भी वह जान भी लेता है नियतें भी 
जो खाना ला शऊर में जगमगा रहा है वही खुदा है 

किसी को ताज वक़ार बख्से किसी को ज़िल्लत के गार बख्से 
जो सब के माथों पे मेहर कुदरत लगा रहा है वही खुदा है 

सफ़ेद उसका सियाह उसका नफ़्स है गवाह उसका 
जो शोलाये जान जला रहा है बुझा रहा है वही खुदा है 


कोई तो है जो निज़ाम हस्ती चला रहा है वही खुदा है 

GULON MEAIN RANG BHARE BAAD E NAU BAHAAR CHALE by FAIZ AHMED FAIZ

gulon mein rang bhare baad-e-nau-bahaar chale 

chale bhi aao ki gulshan ka karobar chale 

qafas udas hai yaro saba se kuchh to kaho 
kahin to bahar-e-Khuda aaj zikr-e-yar chale 

kabhi to subh tere kunj-e-lab se ho aaghaz 
kabhi to shab sar-e-kakul se mushk-bar chale 

bada hai dard ka rishta ye dil gharib sahi 
tumhaare nam pe aaenge gham gusar chale 

jo hum pe guzri so guzri magar shab-e-hijran 
hamare ashk teri aaqibat sanwar chale 

huzur-e-yar hui daftar-e-junun ki talab 
girah mein le ke gareban ka tar tar chale 

maqam Faiz koi rah mein jacha hi nahin 
jo ku-e-yar se nikle to su-e-dar chale


- Faiz Ahmed Faiz

Baat karni mujhe mushkil kabhi aisi to na thi | BAHADUR SHAH ZAFAR

baat karni mujhe mushkil kabhi aisi to na thi 
jaisi ab hai teri mahfil kabhi aisi to na thi 


le gaya chhin ke kaun aaj tera sabr o qarar 

be-qarari tujhe ai dil kabhi aisi to na thi 


us ki aankhon ne KHuda jaane kiya kya jadu 

ki tabiat meri mail kabhi aisi to na thi 


aks-e-ruKHsar ne kis ke hai tujhe chamkaya 

tab tujh mein mah-e-kaamil kabhi aisi to na thi 


ab ki jo rah-e-mohabbat mein uThai taklif 

saKHt hoti hamein manzil kabhi aisi to na thi 


pa-e-kuban koi zindan mein naya hai majnun 

aati aawaz-e-salasil kabhi aisi to na thi 


nigah-e-yar ko ab kyun hai taghaful ai dil 

wo tere haal se ghafil kabhi aisi to na thi 


chashm-e-qatil meri dushman thi hamesha lekin 

jaisi ab ho gai qatil kabhi aisi to na thi 


kya sabab tu jo bigaDta hai 'zafar' se har bar 

KHu teri hur-shamail kabhi aisi to na thi 

----------------------------------------------------------------------------



بات کرنی مجھے مشکل کبھی ایسی تو نہ تھی 
جیسی اب ہے تیری محفل کبھی ایسی تو نہ تھی 


لے گیا چھین کے کون آج تیرا صبر و قرار

بے-قراری تجھے ای دل کبھی ایسی تو نہ تھی


اس کی آنکھوں نے خدا جانے کیا کیا جادو 

کی طبیت میری میل کبھی ایسی تو نہ تھی


عکس-ا-رخسار نے کس کے ہے تجھے چمکایا 

ٹیب تجھ میں مہ-ا-کامل کبھی ایسی تو نہ تھی


اب کی جو راہ-ے-محبّت میں اٹھائی تکلیف 

سخت ہوتی ہمیں منزل کبھی ایسی تو نہ تھی


پا-ا-کبن کوئی زندان میں نیا ہے مجنوں 

آتی آواز-ا-سلاسل کبھی ایسی تو نہ تھی


نگاہ-ا-یار کو اب کیوں ہے تغافل ای دل 

وو تیرے حال سے غفل کبھی ایسی تو نہ تھی


چشم-ا-قتل میری دشمن تھی ہمیشہ لیکن 

جیسی اب ہو گئی قتل کبھی ایسی تو نہ تھی


کیا سبب تو جو بگڑتا ہے 'ظفر' سے ہر بار 

خو تیری ہر-شمائل کبھی ایسی تو نہ تھی


-written by KING BAHADUR SHAH ZAFAR

Wo Shaks MUSALMAN Tha

Mili AAZADI Jisse Wo Shaks MUSALMAN Tha,
Diya HIND Ko TAJ MAHAL Wo Shaks bhi MUSALMAN Tha,

Aaj Kehti He Duniya Ke DEHSATGARD He MUSALMAN,
Tha GANDHIJI Ne Apnaya KIRDAR jiska Wo Shaks MUSALMAN Tha,

Lagta He Duniya Wale TIPU SULATAN Ko Bhul Gaye,
Shuru Ki Jisne JUNG E AAZADI Wo Shaks MUSALMAN Tha,

Jaha Lehrata He TIRANGA Aaj Bhi Badi SHAAN Se,
Kiya Ta'amir Jisne LAAL QILLA Wo Shaks MUSALMAN Tha,

SAARE JAHAAN SE ACCHA HINDUSTAN HAMARA,
Likha Jisne TARANA-E-HIND Wo Shaks MUSALMAN Tha.

- by Unknown 

Mohsin Naqvi - Tumhe jab ru baru dekha karenge

‏تمہیں جب رُوبرو دیکھا کریں گے
یہ سوچا ہے،بہت سوچا کریں گے

نظر میں چودھویں کا چاند ہوگا
سمندر کی زباں بولا کریں گے

نہ آئے گا کوئی الزام تجھ پر
ہم اپنے آپ کو رسوا کریں گے

اس الجھن میں کٹی ہے عمر محسنؔ
کہ پل دو پل میں ہم کیا کیا کریں گے ؟

محسن نقوی--

Tu Reh Naward-e-Shauq Hai, Manzil Na Kar Qabool

تو  رہ  نوارد-ا-شوق  ہے منزل  نہ کر قبول

لیلیٰ  بھی  ہم -نشین  ہو  تو  محمل  نہ  کر  قبول
Tu Reh Naward-e-Shauq Hai, Manzil Na Kar Qabool

Laila Bhi Hum-Nasheen Ho To Mehmil Na Kar Qabool
If you traverse the road of love, Donʹt yearn to seek repose or rest,

If Layla be your companion close that litter shun with great contempt.

اے جوے اب بڑھ کے ہو دریا-ا-تند-و-تیز

ساحل تجھے اتا ہو تو ساحل نہ کر قبول
Ae Jooye Aab Barh Ke Ho Darya-e-Tund-o-Taiz

Sahil Tujhe Atta Ho To Sahil Na Kar Qabool
O streamlet, onward flow and get transformed to torrent strong and deep,

If bank is eʹer on you bestowed, Abstain, flow on with mighty sweep.
کھویا  نہ  جا  صنم  کدہ-و-کائنات میں

محفل گداز گرمی-و-محفل نہ کر قابول
Khoya Na Ja Sanamkada-e-Kainat Mein
Mehfil Gudaz! Garmi-e-Mehfil Na Kar Qabool
Donʹt lose your bearings in this world because with idols it is full,

The assemblage here can cast a spell,disdain, or strings of heart shall pull.
صبح ازل یہ مجھ  سے کہا جبریل نے

جو عقل کا غلام ہو, وہ دل نہ کر قبول
Subah-e-Azal Ye Mujh Se Kaha Jibreel Ne

Jo Aqal Ka Ghulam Ho, Woh Dil Na Kar Qabool
Gabriel on Creationʹs Early Morn, a piece of useful counsel gave,

He bade me not accept a heart enchained by mind of man like slave.
باطل دوویی پسند ہے, حق لا-شریک ہے

شرکت میانہ حق-و-باطل نہ کر قبول

Batil Dooyi Pasand Hai, Haq La-Shareek Hai

Shirkat Mayana-e-Haq-o-Batil Na Kar Qabool
Untruth conceals in various masks but Truth and God are both unique,

There canʹt be pool ʹtwixt good and bad—This fact is known from times antique.

CLASS SE BHAG JANE SE KYA FAYADA | क्लास से भाग जाने से क्या फायदा

CLASS SE BHAG JANE SE KYA FAYADA 

AUR FIR MAR KHANE SE KYA FAYADA 

HUM GADAHE FIR SE BAN JAYENGE, DEKHNA 
HUMKO MURGHA BANA NE SE KYA FAYADA 

JO HAMARI SAMAJH MEIN HI AATA NAHIN 
ROZ USKO PADHANE SE KYA FAYADA 

UNKO BUN NE DO SWEATER,NA CHHEDO UNHE 
APNI SHAMAT BULANE SE KYA FAYADA 

DAAD DETA NAHI TUMKO AAZAR KOI 
FIR GHAZAL GUNGUNANE SE KYA FAYADA

-----------------------------------------------

क्लास से भाग जाने से क्या फायदा 
और फिर मार खाने से क्या फायदा 

हम गधे फिर से बन जायेंगे, देखना 
हमको मुर्ग़ा बनाने से क्या फायदा 

जो हमारी समझ में ही आता नहीं 
रोज़ उसको पढ़ने से क्या फायदा 

उनको बुनने दो स्वेटर, न छेड़ो उन्हें 
अपनी शामत बुलाने से क्या फायदा 

दाद देता नहीं तुमको ाज़र कोई 
फिर ग़ज़ल गुनगुनाने से क्या फायदा
--------------------------------------
CLASS SE BHAG JANE SE KYA FAYADA | क्लास से भाग जाने से क्या फायदा
CLASS SE BHAG JANE SE KYA FAYADA | क्लास से भाग जाने से क्या फायदा

ghar se nikle to ho socha bhi hai kidhar jaoge?? | گھر سے نکلے تو ہو سوچا بھی ہے کدھر جاؤگے؟ | घर से निकले तो हो सोचा है किधर जाओगे?

ghar se nikle to ho socha bhi hai kidhar jaoge??
har taraf tez hawayen hai, bikhar jaoge

itna asan nhi hai, lafzon pe bharosha karna
ghar ki dahleez pukaregi jidhar jaoge

sham hote hi simat jayenge sare raste
bahte darya sa, jahan hoge, thahar jaoge

har naye shaer me kuchh raten kadi hoti hai
chhat se diwaren juda hongi to dar jaoge

pehle har cheez nazar ayegi be maeni si
aur phir apne hi nazron se utar jaoge

------------------------------------------------
گھر سے نکلے تو ہو سوچا بھی ہے کدھر جاؤگے؟
ہر طرف تیز ہویں ہے ، بکھر جاؤگے 

اتنا آسان نہی ہے ، لفظوں پی بھروشہ کرنا 
گھر کی دہلیز پکریگی جدھر جاؤگے 

شام ہوتے ہی سمٹ جاینگے سارے راستے 
بہتے دریا سے ، جہاں ہوگے ، ٹھہر جاؤگے 

ہر نے سهر مے کچھ راتیں کدی ہوتی ہے 
چھت سے دیواریں جدا ہونگی تو دار جاؤگے 

پہلے ہر چیز نظر یگی نے ، بے مینی سی 
اور پھر اپنے ہی نظروں سے اتر جاؤگے 

------------------------------------------------
घर से निकले तो हो सोचा है किधर जाओगे?
हर तरफ तेज़ हवाएं है बिखर जाओगे 

इतना आसान नहीं है लफ़्ज़ों पे भरोशा करना
घर की दहलीज़ पुकारेगी, जिधर जाओगे

शाम होते ही सिमट जायेंगे सारे रस्ते 
बहते दरया सा, जहाँ होगे, ठहर जाओगे

हर नए सहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं 
छत से दीवारें जुड़ा होंगी तो दर जाओगे 

पहले हर चीज़ नज़र आएगी बे-मानी सी
और फिर अपने ही नज़रों से उतर जाओगे

--@ Nida Fazli

Ghar nari gawari, chaahe jo kahe | घर नारी गवरी, चाहे जो कहे

Preetam desh suhawano, jahan basen dildaar 
Khusro...
Wahoo desh pe, so tan man deejo waar

Ghat ke andar baith ke, or kare premi se pyar
Aise piya pe chupchap, na tan man deejo waar

Ghar nari gawari, chaahe jo kahe
Main Nijam se naina laga aaii re

Khusro rain suhag ki, so jagi pii ke sang
Tan mora, man piihuu kaa, so dono aik hi rang

Aisa sundar, aisa chhabeela, duja koi nahin
Jaisa Baba Farid ka pyara Khwaja Nijamuddin

Aao sakhyon sab mil baithen, peer nijam ke sang 
ek pal me jo, nain mila kar, range prem ke rang 

Ghar nari gawari, chaahe jo kahe
Main Nijam se naina laga aaii re

Khusro sagda jug bhar dhunde, nagri nagri jaye
Tohra piya, tere sang rahat hai, tu kahe ghabraye

Sohani soorat, mohani moorat,
Mein to hirday beech samaa aaii re

Ghar nari gawari, chaahe jo kahe
Main Nijam se naina laga aaii re

Maraa tana mazam, aay muddaye, tarze adayam dee
Manam rindey, kharabaaty, sare bazaar me raqsam

Ghar nari gawari, chaahe jo kahe
Main Nijam se naina laga aaii re

Khusrao Nijam ke bal bal jayye,
Mein to anmol cheri bita aaii re

Ghar nari gawari, chaahe jo kahe
Main Nijam se naina laga aaii re


--@ Ameer Khusro

=================================================================

प्रीतम देश सुहावनो, जहाँ बसें दिलदार 
खुसरो ...
वहू देश पे, सो तन मन दीजो वार 

घाट के अंदर बैठ के, और करे प्रेमी से प्यार 
ऐसे पिया पे चुपचाप, न तन मन दीजो वार 

घर नारी गवरी, चाहे जो कहे 
मैं निजाम से नैना लगा आई रे 

खुसरो रेन सुहाग की, सो जगी पी के संग 
तन मोरा, मन पीहू का, सो दोनों एक ही रंग

घर नारी गवरी, चाहे जो कहे 
मैं निजाम से नैना लगा आई रे 

ऐसा सुन्दर, ऐसा छबीला, दूजा कोई नहीं 
जैसा बाबा फरीद का प्यारा ख्वाजा निजामुद्दीन

आओ साख्यों सब मिल बैठें, पीर निजाम के संग 
एक पल में जो, नैन मिला कर, रेंज प्रेम के रंग 

घर नारी गवरी, चाहे जो कहे 
मैं निजाम से नैना लगा आई रे 

खुसरो सगड़ा जग भर ढूंढे, नगरी नगरी जाये 
तोहरा पिया, तेरे संग रहत है, तू कहे घबराये 

सोहनी सूरत, मोहनी मूरत,
में तो ह्रदय बीच समा आई रे 

घर नारी गवरी, चाहे जो कहे 
मैं निजाम से नैना लगा आई रे 

मरा तना मज़म, ए मुद्दई, तर्ज़े अदायम दी 
मनम रिंदे, ख़राबाटी, सरे बाजार में रअक़्सम 

खुसरो निजाम के बल बल जाइये,
में तो अनमोल चेरी बिता आई रे 

घर नारी गवरी, चाहे जो कहे 
मैं निजाम से नैना लगा आई रे 

-- @अमीर खुसरो 

na tha kuch to khuda tha | نہ تھا کچھ تو خدا تھا | न था कुछ तो ख़ुदा था

na tha kuch to khuda tha, kuch na hota to khuda hota duboya mujhko hone ne, na hota main to kya hota
hua jab ghum se yu bebas, to ghum kya sar ke katne ka na hota agar juda tan se, to jaano par dhara hota
huyi muddat ke gaalib mar gaya par yaad aata hai wo har ek baat per kahna ke yu hota to kya hota
na tha kuch to khuda tha, kuch na hota to khuda hota duboya mujhko hone ne, na hota main to kya hota
نہ تھا کچھ تو خدا تھا, کچھ نہ ہوتا تو خدا ہوتا ڈبویا مجھکو ہونے نے, نہ ہوتا میں تو کیا ہوتا
ہوا جب گھوم سے یوں بےبس, تو گھوم کیا سر کے کاٹنے نہ ہوتا اگر جدا تن سے, تو جانو پر دہرا ہوتا
ہویی مدّت کے گالب مر گیا پر یاد آتا ہے وہ ہر ایک بات پر کہنا کے یوں ہوتا تو کیا ہوتا
نہ تھا کچھ تو خدا تھا, کچھ نہ ہوتا تو خدا ہوتا ڈبویا مجھکو ہونے نے, نہ ہوتا میں تو کیا ہوتا
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता
हुआ जो ग़म से यूँ बेहिस तो ग़म क्या सर के कटने का न होता गर जुदा तन से तो जानूं पर धरा होता
हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है वह हर एक बात पर यह कहना के यूँ होता तो क्या होता
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता
-- Diwan-E-Ghalib by Mirza Ghalib

बुढ़ापा

ये तेल भी एक दिन फुक जाएगा ये सांस भी एक दिन रुक जाएगा
बेड़ा पार उसी का है जो सामने रब के झुक जाएगा
कितनी दुनिया गुजर गई और कितनी और भी आएगी
कितनी है मौजूद यहां पर मौत सभी को  आएगी
ना चढ़ती जवानी पर घमंड करें एक रोज बुढ़ापा आएगा
चलना फिरना होगा मुश्किल टुकड़ा खाट पर खाएगा
ये हुस्न जवानी बस कुछ दिन के तेरी चमड़ी भी सिलवट पड़ जाएंगे
ये रंग तेरा ढल जाएगा फिर बच्चे तुझे चिढ़ाएंगे
तुझे टाइम पर टुकड़ा मुश्किल से और खुद ही मजे उड़ाएंगे 
तू कोई खिदमत इन्हें कहेगा फिर ये तुझे डांटेंगे 
तू बैठा खामोश रहेगा माल तेरा यह बाटेंगे


Ibtadaye ishq hai rota h kya

Ibtadaye ishq hai rota h kya 
Age age dekhye hota h kya

Neend ab tere mukaddar me nhi
Raat ki pichhle pahar sota h kya

Ibtadaye ishq hai rota h kya 
Age age dekhye hota h kya

Ye nishane ishq hai jate nhi
Daagh chhati ke abas dhota hai kya

Gir ke uthna uth ke chalna sikh le
Baghe manzil is tarah hota h kya

--- Meer Taqi Meer

अगर कभी मेरी याद आए | Amjad Islam Amjad

अगर कभी मेरी याद आए तो
चांद रातों की नर्म दिलगीर रोशनी में किसी सितारे को देख लेना
अगर वह नाहे फलक से उड़ कर तुम्हारे कदमों में आ गिरे
तो जान लेना वो सितारा था मेरे दिल का
अगर ना आए मगर यह मुमकिन है
कि किस तरह है कि तुम किसी पर निगाह डालो
तो उस की दीवारें जा न टूटे
वो अपनी हस्ती भूल न जाना
अगर कभी मेरी याद आए
गुरेज करती हवा की लहरों पर हाथ रखना
मैं खुश्बुओं मैं तुम्हें मिलूंगा
मुझे गुलाबों के पत्तियों में तलाश करना
मैं औश के कतरों के आईने में तुझे मिलूंगा
अगर सितारों में, उसके कदमों में, खुशबू में न पाओ मुझको
तो अपने क़दमों में देख लेना
मैं गर्द होती मुशफातों में तुझे मिलूंगा
कहीं रोशन चिराग देखो तो जान लेना
के हर पतंग के साथ में भी बिखर चुका हूं
तुम अपने हाथों से उन पतंगों के खाक दरिया में डाल देना
मैं खा बनकर समंदरों में सफ़र करुंगा
किसी न देखे हुए जज़ीरे पे  रुक के तुम को सदायें दूंगा
समंदरों के सफर पर निकले तो उस जज़ीरे पर भी उतरना
अगर कभी मेरी याद आए 
-- अमजद इस्लाम अमजद