अगर ऐसा भी हो सकता
तुम्हारी नींद में सब ख्वाब अपने मुन्तक़िल करके
तुम्हें वह सब दिखा सकता
जो ख्वाबों में मैं अक्सर देखा करता हूं
ये हो सकता है अगर मुमकिन तुम्हें मालूम हो जाता
तुम्हे मैं ले गया था सरहदों के पार दिना मैं
तुम्हें वह घर दिखाया था जहां पैदा हुआ था मैं
जहां छत पर लगा सरयों का जंगला धूप से दिन भर मेरे आंगन में सतरंगी बनाता था मिटाता था
दिखाई थी तुम्हें वह खेतियां सरसों के दिनों में
कि जिस के पीले पीले फूल तुमको ख्वाब में कच्चे खिलाए थे
वही एक रास्ता था टालियो का जिस पर मीलों तक पारा करते थे
चूले सौंधे सावन के उसी की सौंधी खुशबू से महक उठी है आंखें
जब कभी उस ख्वाब से गुजरो
तुम्हें रोहतास का चलता हुआ भी तो दिखाया था
किले में बंद रहता था जो दिन भर रात को गांव में आ जाता था कहते हैं
तुम्हें काला से कालू वालों तक लेकर उड़ा हूं
मैं तुम्हें दरिया ए झेलम पे अजब मंजर दिखाए थे
जहां तरबूज पर लेटे लेटे हुए तीरक लड़के बैठे रहते थे
जहां तगड़ी से एक सरदार की पगड़ी पकड़कर मैं नहाता डुबकियां लेता
मगर जब घोटा जाता तो मेरी नींद खुल जाती
मगर यह सिर्फ ख्वाबों में ही मुमकिन है
वहां जाने में अब दुश्वारियां हैं कुछ सियासत की
वतन अब भी वही है पर नहीं है मुल्क अब मेरा
वहां जाना अब तो दो दो सरकारों के दसयों दफ्तरों से शकल पर लगवा कर मुहरें
ख्वाब साबित करने पड़ते हैं
-- गुलज़ार
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